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आयुष्य मन्दिरम् एक गैर-लाभकारी (a not-profit) संस्थान है जिसका लक्ष्य एवं उद्देश्य भारतीय पारम्परिक चिकित्सा ज्ञान जैसे योग, प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद, एक्युप्रेशर आदि का विश्वभर में प्रचार-प्रसार करना तथा उपचार,अनुसंधान व प्रशिक्षण की सुविधाएं प्रदान करना है।
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संसार की सबसे बड़ी और सस्ती औषधि

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संसार की सबसे बड़ी और सस्ती औषधि

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-प्राकृतिक चिकित्सा क्लिनिक, आयुष्य मंदिरम

ब्रह्मांड का निर्माण पंचतत्व से हुआ है, हमारा शरीर भी एक ब्रह्मांड ही है, जो पंचतत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) से ही बना है। पृथ्वी तत्व हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। शरीर के निर्माण, पालन–पोषण, वृद्धि और विकास के लिए मिट्टी अत्यन्त आवश्यक तत्व है, सभी तरह के पौष्टिक आहार पेड़–पौधों, वनस्पतियों और विभिन्न प्रकार के खाद्यान्न मिट्टी से मिलते हैं। हमारे शरीर की मांसपेशियां, हड्डियां और चर्म इसी पृथ्वी तत्व से बने हैं, अत: स्वस्थ रहना है, तो पृथ्वी (मिट्टी) तत्व के संपर्क में रहना बेहद जरूरी है। पृथ्वी तत्व से चिकित्सा की प्रक्रिया को मृत्तिका चिकित्सा या मिट्टी चिकित्सा कहते हैं।

मिट्टी जितनी सर्वसुलभ है, उतना ही वह महान गुणों से परिपूर्ण भी है

प्राकृतिक चिकित्सा में मिट्टी का महत्वपूर्ण स्थान है। शरीर जिन पाँच तत्वों से मिलकर बना है उनमे से मिट्टी भी एक है। पृथ्वी पंचतत्वों में पाँचवा और अन्तिम तत्व है। यह अन्य चार तत्वों-आकाश, वायु, अग्नि तथा जल का रस है तथा यह सभी में प्रधान तत्व है। पृथ्चों में सभी चेतन व अचेतन वस्तुओं को धारण कर सकने का गुण विद्यमान है। पृथ्वी के गर्भ से कई रत्नों, खनिजों, खाद्यपदार्थों, औषधियों, जड़ी बूटियों, शुद्ध जल वनस्पति आदि को प्राप्त किया जाना निश्चित हो पाता है। पृथ्वी के द्वारा ही प्राप्त खाद्य पदार्थों को पाकर हम अपना पालन पोषण कर स्वस्थ बनते है। पृथ्वी से हमें कई प्रकार के अमूल्य रत्न और औषधियों प्राप्त होती है। पृथ्वी से ही सम्पूर्ण प्राणी जगत को अन्न प्राप्त हो पाता है। मिट्टी सम्पूर्ण धरा पर आसानी से पाया जाने वाली तत्व है। मिट्टी को प्राप्त करना बहुत ही आसान व सुलभ है। मि‌ट्टी के द्वारा पृथ्वी तत्व की पूर्ति कर रोगों की चिकित्सा की जाती है। मिट्टी जितनी सर्वसुलभ है, उतना ही वह महान गुणों से परिपूर्ण भी है। मिट्टी में ताप सन्तुलन के गुण के कारण सर्दी व गर्मी दोनों को सोखने का गुण है जो कि गर्मी को सोखकर ठण्डक और ठण्डक को सोखकर गर्मी प्रदान करती है जो कि रोग चिकित्सा में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करती है। मिट्टी के निरन्तर प्रयोग से शरीर के भीतर जमे मल भी ढीले होकर बाहर नीचे चले आते है। विष को खींचकर बाहर निकालने का गुण भी मिट्टी में विद्यमान है। साँप, बिच्छू, मधुमक्खियों, पागल कुत्ते के काटने तथा औषधि के विष को दूर मिट्टी के द्वारा किया जा सकता है। मिट्टी में हो सभी प्राणियों के जीवन निर्वाह के लिए खाद्य पदार्या का उनसे भिन्न-भिन्न रसों की प्रधानता के साथ उत्पन्न करने को शक्ति होती है।

मि‌ट्टी की विद्युत शक्ति से सारे रोग सरलता और स्थाई रूप से मिट जाते हैं। मि‌ट्टों के द्वारा कीटाणुओं का नाश किया जा सकता है। मिट्टी में धारण गुण के कारण वह कूड़ा-करकट, अपशिष्ट पदार्थ आदि को धारण कर स्वच्छता को बनाए रखती है। मि‌ट्टी में विभिन्न जल स्रोतों से स्वच्छ कर जल को शुद्ध करने का गुण भी है। इसी प्रकार विभिन्न गुणों से सुसज्जित होकर मि‌ट्टी संसार की सबसे बड़ी और सस्ती औषधि है।

मिट्टी-चिकित्साका उपयोग

इस पञ्च-भूतात्मक शरीर में मिट्टी (पृथ्वीतत्त्व)-की प्रधानता है। मिट्टी हमारे शरीर के विषों, विकारों, विजातीय पदार्थों को निकाल बाहर करती है। यह प्रबल कीटाणुनाशक है। मिट्टी विश्व की महानतम औषधि है। पुरातन काल से ही मिट्टी चिकित्सा का भरपूर उपयोग हुआ है. जैसे–मिट्टी से स्नान, मिट्टी के घर में रहना, मिट्टी से हाथों, पैरों और शरीर की सफाई, पृथ्वी पर सोना, पृथ्वी पर नंगे पैर चलना, चिकित्सा का ही एक रूप है।

मिट्टी-चिकित्साके प्रकार

(क) मिट्टीयुक्त जमीन पर नंगे पाँव टहलना- स्वच्छ धरती पर, बालू, मिट्टी या हरी दूब पर प्रातः-सायं भ्रमण करने से जीवनी-शक्ति बढ़कर अनेक रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करती है।

(ख) मिट्टी पर सोना- धरती पर सीधे लेटकर सोने से शरीर पर गुरुत्वाकर्षण-शक्ति शून्य हो जाती है। स्त्रायविक दुर्बलता, अवसाद, तनाव, अहंकार की भावना दूर होकर नयी ऊर्जा एवं प्राण शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं। इसके लिये सीधे धरती पर या पलंग पर आठ इंच से बारह इंच तक मोटी समतल बालू बिछाकर सोना चाहिये। प्रारम्भ में थोड़ी कठिनाई होती है, परंतु अभ्यास करने से धीरे-धीरे आदत पड़ जाती है।

(ग) सर्वाङ्ग में गीली मिट्टी का लेप सर्वप्रथम किसी अच्छे स्थान से चिकनी मिट्टी को लाकर उसे कंकड़ पत्थररहित करके साफ-स्वच्छ करने के बाद कूट-पीसकर छानकर शुद्ध जल में बारह घंटे तक भिगो दे। उसके बाद आटे की तरह गूंदकर मक्खन सदृश लोई बनाकर समस्त शरीर पर इस मुलायम मिट्टी को आधा सेमी० मोटी परत के रूप में पेट, पैर, रीढ़, गर्दन, चेहरा, जननाङ्गों और सिर पर लेप करे। इसके बाद पौन घंटा से एक घंटा तक धूप-स्त्रान ले। मिट्टी सूखने से त्वचा में खिंचाव होने से वहाँ का व्यायाम होता है और रक्त-सञ्चार तीव्र होकर पोषण मिलता है। धूप-स्त्रान से मिट्टी को पूर्णतः सुखाकर भलीभाँति स्नान करके विश्राम करे।

मिट्टीकी पट्टी तैयार करनेकी विधि 

भुरभुरी चिकनी मिट्टी या काली मिट्टी किसी अच्छे स्थान से या रसायन रहित किसी खेत से ढाई-तीन फिट नीचे की मिट्टी लेकर उसे कूटकर एक-दो दिन धूप में सुखा दे। कंकड़-पत्थर निकालकर साफ कर ले। इसे कूट-पीसकर छानकर बारह घंटे तक शुद्ध पानी में भिगो दे। बारह घंटे के बाद लकड़ी की करणी (पलटा)-से अच्छी तरह गूंदकर मक्खन की तरह मुलायम कर ले। मिट्टी को इतना ही गीला रखे कि वह बहे नहीं (आटेके ढीलेपन से थोड़ी कड़ी रखनी चाहिये)। मिट्टी की पट्टी के लिये खादी का मोटा एवं सछिद्र कपड़ा अथवा जूटका टाट (पल्ली) काम में ले। अलग-अलग अङ्गों के अनुसार बने साँचे (ट्रे) में लकड़ी के पलटे से मिट्टी को रखकर आधा इंच मोटी पट्टी बनावे। साँचा नहीं हो तो पत्थरकी शिला या लकड़ी के चौकोर पाटे (चौकी)- पर रखकर पट्टी बनावे।

इस पट्टीको पेट, रीढ़, सिर आदि पर सीधे सम्पर्क में रखे। जिन रोगियोंको असुविधा हो तो साँचे में नीचे खादी का सछिद्र कपड़ा ‘या टाट की एक तह बिछाकर उसपर मिट्टी की पट्टी बनाकर चारों ओर से पैक करके रखे। रोगी के अङ्ग पर समतल तहवाला हिस्सा रखे। पट्टी रखनेके बाद ऊपर से ऊनी वस्त्र या मोटे कपड़े से ढक दे। प्रत्येक रोगी का मिट्टी-पट्टीवाला वस्त्र अलग-अलग रखे।

बार काम में ली हुई मिट्टी को दोबारा काम में नहीं ले। ठंडी मिट्टी की पट्टी देने से पूर्व उस अङ्ग को सेंक द्वारा किश्चित् गरम कर ले। दुर्बल रोगी, श्वास रोग, दमा, जुकाम, तीव्र दर्द, साइटिका, आर्थराइटिस, गठिया, आमवात, गर्भावस्था, बच्चों को यह प्रयोग यदि अरुचिकर एवं असुविधाजनक लगे तो नहीं करावे ।

अङ्गोंके अनुसार अलग-अलग पट्टी बनाये

(अ) रीढ़की मिट्टी-पट्टी-डेढ़ फीट लम्बी एवं तीन इंच चौड़ी मिट्टी की पट्टी बनाकर ग्रीवा-कशेरुका से कटि-कशेरुका तक रखे।

(ब) सिरकी मिट्टी-पट्टी-८-१० इंच लम्बी, ४-६ इंच चौड़ी, आधा इंच मोटी पट्टी बनाकर सिर पर टोपी को तरह रखे या कुछ छोटी बनाकर ललाट पर रखे।

(स) आँखकी मिट्टी-पट्टी-१० इंच लम्बी, ४ इंच चौड़ी, आधा इंच मोटी बनाकर आँखों पर रखे।

(द) कानकी मिट्टी-पट्टी-कानों में रूई लगाकर कान पर गोलाकार मिट्टी की पट्टी या लेप कर सकते हैं।

(य) पेटकी मिट्टीपट्टी-एक फुट लम्बी, ६-८ इंच चौड़ी, आधा इंच मोटी पट्टी बनाकर नाभि से लेकर नीचे तक, मध्य उदर पर रखनी चाहिये।

रीढ़, सिर तथा पेट तीनों पर एक साथ मिट्टी की पट्टी रखने से शिरःशूल (सिरदर्द), हाई ब्लडप्रेशर, तेज बुखार, मूर्च्छा, अनिद्रा, नपुंसकता, मस्तिष्क ज्वर, स्नायु-दौर्बल्य, अवसाद, तनाव, मूत्ररोग इत्यादि में लाभ होता है। आँख पर मिट्टी-पट्टी रखने से आँखों के समस्त रोग, जलन, सूजन, दृष्टि-दोष दूर होते हैं। गले की सूजन, टांसिलाइटिस, स्वरयन्त्र की सूजन (लैरिंजाइटिस) आदि में स्थानीय वाष्प देकर गरम मिट्टी की पुल्टिस बाँधे।

पेट, आमाशय, यकृत्, प्लीहा, कमर, जननाङ्ग, गुदाद्वार, अग्नाशयआदि अङ्गों पर मिट्टी की पट्टी रखने से उनसे सम्बन्धित रोगों में लाभ मिलता है। पेट के प्रत्येक रोग में पेडू पर मिट्टी की पट्टी अवश्य देनी चाहिये।

 

Ayushya Mandiram

Comment

  • missindoria
    September 2, 2024 at 9:44 pm

    यह वेबसाइट मुझे बहुत अच्छी लगी। यह साइट पूरी तरह से हिंदी भाषा में है और सभी लेख बहुत अच्छी तरह से समझ में आते हैं। धन्यवाद! आयुष्य मंदिरम के सभी लेखकगण।

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