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Welcome to Ayushya Mandiram

आयुष्य मन्दिरम् एक गैर-लाभकारी (a not-profit) संस्थान है जिसका लक्ष्य एवं उद्देश्य भारतीय पारम्परिक चिकित्सा ज्ञान जैसे योग, प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद, एक्युप्रेशर आदि का विश्वभर में प्रचार-प्रसार करना तथा उपचार,अनुसंधान व प्रशिक्षण की सुविधाएं प्रदान करना है।
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FAQ Page

Ayushya Mandiram / FAQ Page
महर्षि चरक ने निरोग रहने का सरल और अचूक उपाय क्या बताया है?

नरो हितहारविहारसेवी समीक्ष्यकारी विषयेष्वशक्तः। दाता सम: सत्यपर: क्षमावानाप्तोपसेवी च भवत्यरोग:।।’
नरो हिताहार-विहारसेवी, समीक्ष्यकारी, विषयेषु असक्तः। दाता, समः, सत्यपरः, क्षमावान्, आप्तोपसेवी, च भवति अरोगः।
अर्थात जो व्यक्ति सदैव हितकर आहार-विहार का सेवन करता है, सोच-समझकर कार्य करता है, विषयों में आसक्त नहीं होता, जो दानशील, समत्व बुद्धि से युक्त, सत्यपरायण, क्षमावान, वृद्धजनों की सेवा करने वाला है, वह निरोग होता है।

मतिर्वचः कर्म सुखानुबन्धं सत्त्वं विधेयं विशदा च बुद्धिः । ज्ञानं तपस्तत्परता च योगे यस्यास्ति तं नानुपतन्ति रोगाः ।।
सुख देने वाली मति, सुखकारक वचन और सुखकारक कर्म, अपने अधीन मन और शुद्ध पापरहित बुद्धि जिसके पास है और जो ज्ञान प्राप्त करने, तपस्या करने और योग सिद्ध करने में तत्पर रहता है, उसे शारीरिक और मानसिक कोई रोग नहीं होते अर्थात वह सदा स्वस्थ और दीर्घायु बना रहता है।

आचार धर्म के धारण/पालन करने से क्या लाभ होता है?

सुखार्थाः सर्वभूतानां मताः सर्वाः प्रवृत्तयः। सुखं च न बिना धर्मात्तस्माद्धर्मपरो भवेत्।।

सम्पूर्ण प्राणियों की सभी चेष्टाएं सुख-प्राप्त करने के लिए ही होती हैं और वह सुख बिना धर्माचरण के प्राप्त हो ही नहीं सकता, अतः धर्म में परायण रहना चाहिए।

पापेन जायते व्याधिः पापेन जायते जरा। पापेन जायते दैन्यं दुःख शोको भयंकराः।

तस्मात् पापं महावैरं दोषबीजं अमंगलम्। भारते संततं सन्तो नाचरन्ति भयातुराः।।

पाप ही रोग, वृद्धावस्था तथा नाना प्रकार के विघ्नों का बीज है। पाप से रोग होता है, पाप से बुढापा आता है और पाप से ही दीनता, दुःख एवं भयंकर शोकों की उत्पति होती है। वह महान् वैर उत्पन्न करने वाला, दोषों का बीज और अमंगलकारी होता है। इसलिए भारत के सज्जन पुरुष सदा भयातुर हो कभी पाप का आचरण नहीं करते।

वेद और स्मृति में कहा है-आचारः परमो धर्म आचारः परमं तपः। आचारः परमं ज्ञानम् आचरात् किं न साध्यते॥

Good conduct is the highest dharma, it is the greatest penance- It is also the greatest knowledge- What can’t be achieved through good conduct?

आचार धर्म का अनुशीलन कर व्यक्ति अनेकानेक आपदाओं, रोगों, अभिचारों से सुरक्षित रहकर पूर्ण आरोग्य तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सभी को प्राप्त करने में सक्षम हो जाता है। सद आचरण ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है, इसीलिए आत्म उन्नति चाहने वाले बुद्धिजीवी को चाहिए कि वह सदाचरण में सदा निरन्तर प्रयत्नशील रहे।

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