जीवनशैली [शंका-समाधान]
- जीवनशैली [शंका-समाधान]
- पाप और रोगों का संबंध: एक अनजाना रिश्ता
महर्षि चरक ने निरोग रहने का सरल और अचूक उपाय क्या बताया है?
नरो हितहारविहारसेवी समीक्ष्यकारी विषयेष्वशक्तः। दाता सम: सत्यपर: क्षमावानाप्तोपसेवी च भवत्यरोग:।।’
नरो हिताहार-विहारसेवी, समीक्ष्यकारी, विषयेषु असक्तः। दाता, समः, सत्यपरः, क्षमावान्, आप्तोपसेवी, च भवति अरोगः।
अर्थात जो व्यक्ति सदैव हितकर आहार-विहार का सेवन करता है, सोच-समझकर कार्य करता है, विषयों में आसक्त नहीं होता, जो दानशील, समत्व बुद्धि से युक्त, सत्यपरायण, क्षमावान, वृद्धजनों की सेवा करने वाला है, वह निरोग होता है।
मतिर्वचः कर्म सुखानुबन्धं सत्त्वं विधेयं विशदा च बुद्धिः । ज्ञानं तपस्तत्परता च योगे यस्यास्ति तं नानुपतन्ति रोगाः ।।
सुख देने वाली मति, सुखकारक वचन और सुखकारक कर्म, अपने अधीन मन और शुद्ध पापरहित बुद्धि जिसके पास है और जो ज्ञान प्राप्त करने, तपस्या करने और योग सिद्ध करने में तत्पर रहता है, उसे शारीरिक और मानसिक कोई रोग नहीं होते अर्थात वह सदा स्वस्थ और दीर्घायु बना रहता है।
आचार धर्म के धारण/पालन करने से क्या लाभ होता है?
सुखार्थाः सर्वभूतानां मताः सर्वाः प्रवृत्तयः। सुखं च न बिना धर्मात्तस्माद्धर्मपरो भवेत्।।
सम्पूर्ण प्राणियों की सभी चेष्टाएं सुख-प्राप्त करने के लिए ही होती हैं और वह सुख बिना धर्माचरण के प्राप्त हो ही नहीं सकता, अतः धर्म में परायण रहना चाहिए।
पापेन जायते व्याधिः पापेन जायते जरा। पापेन जायते दैन्यं दुःख शोको भयंकराः। तस्मात् पापं महावैरं दोषबीजं अमंगलम्। भारते संततं सन्तो नाचरन्ति भयातुराः।।
पाप ही रोग, वृद्धावस्था तथा नाना प्रकार के विघ्नों का बीज है। पाप से रोग होता है, पाप से बुढापा आता है और पाप से ही दीनता, दुःख एवं भयंकर शोकों की उत्पति होती है। वह महान् वैर उत्पन्न करने वाला, दोषों का बीज और अमंगलकारी होता है। इसलिए भारत के सज्जन पुरुष सदा भयातुर हो कभी पाप का आचरण नहीं करते।
वेद और स्मृति में कहा है-आचारः परमो धर्म आचारः परमं तपः। आचारः परमं ज्ञानम् आचरात् किं न साध्यते॥
Good conduct is the highest dharma, it is the greatest penance- It is also the greatest knowledge- What can’t be achieved through good conduct?
आचार धर्म का अनुशीलन कर व्यक्ति अनेकानेक आपदाओं, रोगों, अभिचारों से सुरक्षित रहकर पूर्ण आरोग्य तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सभी को प्राप्त करने में सक्षम हो जाता है। सद आचरण ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है, इसीलिए आत्म उन्नति चाहने वाले बुद्धिजीवी को चाहिए कि वह सदाचरण में सदा निरन्तर प्रयत्नशील रहे।
मुझे व्यायाम के लिए समय नहीं मिलता है। क्या कुछ खाद्य पदार्थ हैं जिनसे शरीर में ऊर्जा बनी रहे?
शरीर को ऊर्जावान बनाए रखने के लिए प्रोटीन की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है। इसके लिए दिन की शुरुआत अंकुरित अनाज से करें। अंकुरित दालें सबसे बेहतर क्षारीय तत्व हैं जो तनाव को दूर करते हैं और अम्लों के विकारों से शरीर की रक्षा करते हैं। अंकुरित अनाज में प्रोटीन के साथ ही कार्बोहाइड्रेट, विटामिन और खनिज भी होते हैं जो पाचन के लिए बेहद आावश्यक है। इसके साथ ही सब्जियों का पानी पीना भी फायदेमंद होता है। इस रस में रेशे नहीं होते हैं, लेकिन एंजाइम और क्लोरिफिल की अच्छी मात्रा में होते हैं। ये दोनों ही तत्व शरीर में ऊर्जा का स्तर बनाए रखते हैं। इसके साथ ही दिन में 8 से 12 गिलास पानी जरूर पीएं, इससे शरीर में पानी की मात्रा बनी रहती है और डिइाइड्रेशन की समस्या नहीं होती।
स्नान करने की उचित विधि व समय बताइए?
सूर्योदय से पूर्व स्नान करना अच्छा माना गया है। स्नान सदा ठंडे पानी से करना चाहिए। गरम पानी से स्नान करने पर मांसपेशियां कमजोर होती हैं। शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता घटती है, आंखों की रोशनी घटती है और मस्तिष्क पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। गर्म पानी से स्नान करने से रक्त कोशिकाएं फैल जाती हैं, जिससे शारीरिक गर्मी का क्षय होता है। फलस्वरुप सर्दी लगती है, इसलिए गर्म पानी से स्नान नहीं करना चाहिए। सर्दियों में गुनगुने पानी से स्नान किया जा सकता है। स्नान करते समय सबसे पहले नाभि पर पानी डालना चाहिए, उसके बाद नाभि से शरीर के निम्न स्थलों पर, फिर शरीर के पिछले स्थलों पर और अन्त में सिर पर पानी डालना चाहिए। उसके बाद सम्पूर्ण स्नान करना चाहिए।
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September 12, 2024 at 12:22 pm